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रविन्द्रनाथ टैगोर वर्तमान समय की आवश्यकता


दो राष्ट्रों का राष्ट्रगान लिखने वाले और एशिया के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रविन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता में हुआ। इनके पिता देवेंद्र नाथ टैगोर और माता शारदा देवी थी। ये एक महान दार्शनिक, साहित्यकार, संगीतकार, लेखक और विचारों के धनी व्यक्ति थे। उनके पिता ब्रहम समाज से जुड़े थे तो इसका प्रभाव इन पर देखा गया। फिर भी सनातन धर्म के प्रचार के लिए ये आगे दिखाई दिए। इनके सबसे बड़े भाई सत्येंद्र नाथ टैगोर देश के पहले आईसीएस थे। इनके एक भाई ज्योतिप्रसाद टैगोर नाटककार और एक बहन स्वर्णदेवी टैगोर कवयित्री थी। स्वभाविक रूप से टैगोर जी पर बचपन से ही इनका प्रभाव पड़ा।

अतिराष्ट्रवाद के कट्टर विरोधी थे टैगोर 

टैगोर अतिराष्ट्रवाद के कट्टर विरोधी थे। उनका मानना था कि राष्ट्रवाद मानव द्वारा खींची गई रेखाएं हैं। हमें राष्ट्र से ऊपर मानवता के बारे में सोचना चाहिए और वसुधैव कुटुंबकम की नीति का पालन करना चाहिए। अपनी पुस्तक ‘नेशनलिज्म’ में लिखते हैं कि राष्ट्रवाद पश्चिमी अवधारणा है। राष्ट्र राजनीतिक और आर्थिक लोगों का समूह है जहां लोग मशीनीकरण के लिए काम करते हैं। यहां पर लोगों के हितों का ध्यान नहीं रखा जाता है उनकी उपेक्षा की जाती है। जिस प्रकार कार्ल मार्क्स ने धर्म को अफीम बताया था उसी तरह गुरुदेव ने अति राष्ट्रवाद को एक नशा बताया। उनका कहना था कि अतिराष्ट्रवाद ही एक राष्ट्र के अंदर कई राष्ट्र को जन्म देता हैं। उन्होंने अतिराष्ट्रवाद को शैतान रूपी महामारी की संज्ञा दी। इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि किस प्रकार फासीवाद और नाजीवाद ने दो-दो विश्व युद्ध कराकर कोहराम मचाया था। वहीं वर्तमान दृष्टि में देखें तो किस प्रकार पाकिस्तान से अलग राष्ट्र बांग्लादेश बना और अब पाकिस्तान के अंदर ही कुछ हिस्से अलग होने के बात करते हैं। उनका मानना था कि धर्म के नाम पर लोगों की हत्या करना अनुचित हैं। हमें हमेशा मानवता को केंद्र में रखना चाहिए। 

महात्मा गांधी और रविन्द्रनाथ टैगोर

महात्मा गांधी और रविन्द्रनाथ टैगोर के विचारों की तुलना करें तो दोनों के विचार एकदम विपरीत थे लेकिन विचार विपरीत होने पर भी एक दूसरे के सच्चे मित्र थे। विचारों के विपरीत होने के बावजूद दोनों ने एक दूसरे को महात्मा और गुरुदेव की उपाधि दी। दोनों पत्रों के माध्यम से अपने विचार सांझा करते थे। गांधी जी कहां करते थे कि मनुष्य को चरखा चलाना चाहिए,चरखे से अपने कपड़े बनाने चाहिए और संभव हो तो उन्हें बेचना चाहिए। इस पर टैगोर कहते थे कि चरखा चलाकर आप औद्योगीकरण को खत्म कर रहे हैं। चरखा चलाकर आप देश को आगे नहीं ले जा सकते और ना ही मानवता का भला कर सकते हैं। नेहरू जी ने भी कहा था दुनिया में किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच इतना वैचारिक मतभेद नहीं हो सकता जितना गांधी और टैगोर में हैं लेकिन हैरानी की बात यह हैं कि दोनों के अंदर देश की आजादी के लिए विचार एक ही है। खुद गांधी जी ने 25 फरवरी 1926 को ‘यंग इंडिया’ में लिखा कि मैं टैगोर से बहुत मामलों में अलग नहीं हूं। निश्चित रूप से हमारे विचार कुछ मामलों में अलग होते हैं। मुझे आश्चर्य होगा अगर ऐसा नहीं होगा।

वर्तमान समय में बढ़ता अतिराष्ट्रवाद और आतंकवाद कहीं ना कहीं मानवता को खत्म कर रहा है। आज दुनिया के कई देशों में राष्ट्रवाद चरम सीमा पर है। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना कि ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ पूर्ण रूप से अतिराष्ट्रवाद को समर्पित था। आज धर्म के नाम पर लोगों की हत्याएं बढ़ रही हैं। भारत जहां वसुधैव कुटुंबकम की भावना को संपूर्ण विश्व में फैला रहा है वहीं कुछ लोग इसे नष्ट करने में तुले हैं। वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए विश्व को टैगोर के दर्शन को अपनाना चाहिए क्योंकि टैगोर मानवता को केंद्र में रखने की बात करते थे। वह राष्ट्र विरोधी नहीं थे बल्कि अतिराष्ट्रवाद के विरोधी थे जो कि मानवता का शत्रु है। यदि एक बार फिर टैगोर दर्शन को अपनाया जाए निश्चित रूप से मानव कल्याण संभव हो सकेगा।


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