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क्या 2022 में कुपोषण से मुक्त हो पाएगा भारत?


विगत महीने ‘मन की बात’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधन के दौरान पोषण माह का जिक्र किया था। इस सितंबर माह में देश 5वां राष्ट्रीय पोषण माह मना रहा है। पोषण माह का उद्देश्य जमीनी स्तर पर पोषण के प्रति जागरूकता पैदा करना है। आपको बता दें कि पोषण अभियान के अंतर्गत हर साल सितंबर माह में पोषण माह मनाया जाता है। बात पोषण अभियान की करें तो अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर 8 मार्च 2018 को राजस्थान के झुंझुनू जिले से स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शुरुआत की थी। हालांकि 2021-22 के बजट में केंद्र सरकार ने पोषण अभियान में कुछ और योजनाओं को मिलाकर ‘पोषण अभियान 2.0’ की घोषणा की थी। इस अभियान का उद्देश्य 2022 तक स्टंटिंग, वेस्टिंग और जन्म के वक्त शिशु का कम वजन प्रत्येक में हर साल दो प्रतिशत की कमी लाना है। साथ ही साथ एनीमिया से ग्रसित बच्चों और महिलाओं की संख्या में प्रति वर्ष तीन प्रतिशत की कमी लाना है। लेकिन 2022 कुछ महीनों बाद समाप्त होने वाला है, क्या 2022 के बाद देश में कुपोषण खत्म हो जाएगा? शायद राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण–5 जो भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी किया जाता जाता है, के आंकड़े इस बात की गवाही नहीं देते।

इस साल के मई महीने में जारी हुए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण– 5 (एनएफएचएस –5) के आंकड़ों के मुताबिक देश की 57% महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं यानी उनमें खून की कमी है। देश में पांच साल से कम उम्र के 32% बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी उम्र के हिसाब से नहीं है। पांच साल से कम उम्र के 67% बच्चे एनीमिया के शिकार हैं। 36% बच्चे स्टंटिंग का शिकार हैं यानी बच्चों की लंबाई उनकी आयु के हिसाब से कम है। 19% बच्चे वेस्टिंग का शिकार हैं यानी बच्चों का वजन उनकी लंबाई के हिसाब से नहीं है।

अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे आखिर ये आंकड़े बदलते क्यों नहीं हैं। क्या केंद्र सरकार पोषण अभियान के लिए पैसा नहीं दे रही है? अगर पैसा दे रही है तो क्या राज्य उसका सही ढंग से उपयोग नहीं कर पा रहे हैं? अगर राज्य पैसे का सही उपयोग कर रहे हैं तो जमीनी स्तर पर बदलाव क्यों नहीं दिख रहा है? ऐसे तमाम सवाल आपके मन में उठ रहे होंगे।

बात पैसों की करे तो वित्त वर्ष 2021–22 के बजट में केंद्र सरकार ने पोषण अभियान के लिए 20,105 करोड़ रुपए आवंटित किए। लेकिन इस साल जो बजट आया उसमें संशोधित अनुमान में इसे घटाकर 20,000 करोड़ रुपए कर दिया गया। मतलब जितना पैसा सरकार बजट में जारी कर रही है, उसे खर्च नहीं कर पा रही है। हाल ही में देश के थिंक टैंक नीति आयोग ने भी एक रिपोर्ट जारी की है। जिसमें कहा गया है कि 23 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने पोषण अभियान पर आधे से भी कम फंड का इस्तेमाल किया है। फंड के उपयोग में केरल टॉप पर है जिसने केंद्र सरकार द्वारा जारी 58% फंड का उपयोग किया है जबकि उड़ीसा में सिर्फ 8% फंड ही उपयोग किया गया है। अगर हिंदी पट्टी की बात करें तो हिंदी पट्टी में भी उत्तर प्रदेश में केवल 30%, बिहार में 40% और झारखंड में 40% फंड का ही उपयोग किया गया है।

पोषण अभियान के तहत आवंटित फंड के उपयोग संबंधी आँकड़े स्पष्ट रूप से इस अभियान के प्रति राज्य सरकारों का गैर - जिम्मेदाराना रवैया दिखाते हैं। देशभर में कुपोषण और एनीमिया जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने के लिये एक सक्रिय तंत्र की आवश्यकता है और यह टीम इंडिया यानी राज्य सरकारों के सहयोग के बिना इस तंत्र का निर्माण संभव नहीं है। आवश्यक है कि राज्य सरकारें इस ओर गंभीरता से ध्यान दें ताकि इस समस्या को जल्द-से-जल्द समाप्त किया जा सके।



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