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सदैव युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे हैं स्वामी विवेकानंद


 
हर साल देश में 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जयंती मनाई जाती है। साल 1984 से स्वामी विवेकानंद की जयंती को नेशनल यूथ डे (राष्ट्रीय युवा दिवस) के रूप में मनाया जाने लगा। आज स्वामी जी की 159 वी जयंती है और राष्ट्रीय युवा दिवस भी।
स्वामी जी को युवाओं से काफी उम्मीद थी। उन्होंने कहा जब तक देश के युवा अशिक्षित रहेंगे तब तक देश को उन्नति की ओर ले जाना असंभव होगा। स्वामी जी ने अपनी ओजपूर्ण वाणी के शब्दों से सोए हुए युवा को जगाने का कार्य किया । मद्रास में एक संबोधन में स्वामी जी ने कहा कि “ मेरी आशाएं युवाओं पर टिकी हुई है”। युवा किसी भी देश की वह शक्ति है जो देश को विकसित दुनिया की ताकत बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उन्होंने युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए जो चीजें कहीं वो आज भी काफी प्रासंगिक है। 'उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए' ये मंत्र स्वामी जी ने ही भारतीय युवाओं को दिया था। ब्रिटिश राज में युवाओं को आजादी के लिए दिया गया यह मंत्र आज भारतीय युवाओं के लिए एक मुश्किल घड़ी में मार्गदर्शन और प्रेरणा देने का काम करता है।
स्वामी जी चाहते थे कि युवा बढ़-चढ़कर सामाजिक गतिविधियों में भाग लें जिससे न केवल हमारा समाज बेहतर होगा बल्कि इससे युवाओं का व्यक्तिगत विकास भी होगा। स्वामी जी का विचार था कि शिक्षा का मतलब युवाओं को केवल जानकारियां देना नहीं है बल्कि उसकी बौद्धिक क्षमता का विकास करना है।

युवा किसी भी देश की रीढ़ की हड्डी होता है। युवा अपने देश को सफलता की नए ऊंचाइयों पर ले जाता है। युवा किसी भी देश का भविष्य होता है। किसी भी समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र निर्माण में सबसे ज्यादा योगदान युवाओं का ही होता है। लेकिन आजकल के युवाओं में एक नकारात्मकता जन्म ले रही है। उनमें धैर्य की कमी है। वह हर वस्तु को अति शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं।वे कठिन परिश्रम करने की वजह शॉर्टकट्स खोजते हैं ।अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में जब वह असफल हो जाते हैं तब उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है। कई बार मानसिक तनाव से ग्रस्त हो जाते हैं। युवाओं को इस नकारात्मकता की भावना को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करना होगा।

युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहने वाले स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता के कायस्थ परिवार में हुआ। बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी जी के पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के वकील थे जबकि मां भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों वाली महिला थी। स्वामी जी 25 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया और गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए। 11 सितंबर 1893 को शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मेलन में स्वामी जी के भाषण ने उनको विश्व पटल पर पहचान दिलाई। महज़ 39 साल की बेहद कम उम्र में 4 जुलाई 1902 को स्वामी जी पंचतत्व में विलीन हो गए। 

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