पिछले दिन महिलाओं की शादी उम्र में बदलाव के प्रस्ताव को केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूरी दे दी गई। सवाल उठता है कि सरकार का यह फैसला कितना सही है?
सरकार का दावा है कि इस निर्णय से लड़कियों की उच्च शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा, मातृत्व मृत्यु दर कम हो जाएगी, शिशु मृत्यु दर में कमी आएगी, बच्चों में कुपोषण कम होगा,लैंगिक समानता बढ़ेगी, महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त होंगी।
क्या होती है मातृत्व मृत्यु दर और शिशु मृत्यु दर ? मातृत्व मृत्यु दर वह दर होती है कि एक लाख में से कितनी महिलाओं की मृत्यु गर्भावस्था के दौरान या बच्चे को जन्म देने के बाद छह हफ्ते के अंदर हो जाती है। भारत में वर्तमान में यह दर 113 है। शिशु मृत्यु दर वह दर होती है कि 1000 में से कितने बच्चों की मृत्यु एक वर्ष की उम्र से पहले हो जाती है। भारत में वर्तमान में यह दर 32 है।
लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि मातृत्व मृत्यु दर ,बच्चों में कुपोषण ,शिशु मृत्यु दर ,जैसे मुद्दों का संबंध भारत में व्याप्त गरीबी से है। अगर हम भारत के दक्षिण राज्यों की तरफ नजर डालें वहां ये सूचकांक काफी अच्छे हैं जबकि इन राज्यों में लड़कियों की शादी की उम्र तो 18 वर्ष ही है। कुछ लोगों का मानना है कि शादी की उम्र बढ़ाने से समस्या हल नहीं हो सकती क्योंकि भारत जैसे देश में सामाजिक –आर्थिक कारक ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं।
शादी की उम्र में बदलाव की चर्चा फरवरी 2020 के बजट के भाषण से शुरू होती है जिसमें लड़कियों की शादी की उम्र में बदलाव के लिए एक टास्क फोर्स के गठन की बात की गई। इसके बाद 4 जून 2020 को जया जेटली के नेतृत्व में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया। लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री के भाषण में भी यह बात कहीं गई कि सरकार लड़कियों की शादी की उम्र में बदलाव का विचार कर रही है।
इससे पहले 1978 में शारदा एक्ट में संशोधन करके लड़कियों की शादी की उम्र 18 वर्ष और लड़कों की शादी की उम्र 21 वर्ष की गई थी। ब्रिटिश काल के 1929 के शारदा एक्ट के अनुसार लड़कियों की शादी की उम्र 15 वर्ष और लड़कों की शादी की उम्र 18 वर्ष थी ।
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